Database Management System Pdf Notes DBMS Concepts | DBMS Architecture | DBMS Structure Data Model | Data Language | Introduction to DBMS | Advantages and Disadvantages of DBMS
Database Management System (DBMS)
डाटाबेस सम्बंधित सूचनाओ का एक व्यवस्थित रूप है, Database management के द्वारा नई सूचनाओ को जोड़ा जाता है तथा अनावश्यक सूचनाओ को हटाया जाता है, डाटाबेस प्रबंधन के द्वारा सुचना की गुणवत्ता के साथ इसकी सुरक्षा भी होती है
Database – एक दुसरे से संम्बंधित सूचनाओ का समूह डाटाबेस कहलाता है
Data – वह तथ्य जिन्हें संग्रहित किया जा सके तथा जो अपने आप में अर्थपूर्ण हो डाटा कहलाता है
Database Management System Introduction – डाटा को संकलित करके उसका प्रबंधन करना डाटाबेस मनेजमेंट सिस्टम कहलाता है, DBMS एक सामान्य उद्देशीय सोफ्टवेर सिस्टम है जो की विभिन्न प्रयोगों के लिए डाटाबेस को बनाने, कार्यान्वित करने व उसका समुचित प्रबंधन करने की प्रक्रिया को प्रदान करता है, Database तथा DBMS सोफ्टवेर को एक साथ मिलाकर डाटाबेस सिस्टम कहते है
Elements of Database – डाटाबेस के तीन तत्व होते है
(i) Field – यह डाटाबेस का सबसे छोटा तत्व है जो किसी सुचना के एक निश्चित प्रकार को व्यक्त करता है
(ii) Record – विभिन्न फील्डो का समूह मिलकर एक रिकार्ड कहलाता है
(iii) File – विभिन्न रिकोर्ड का समूह मिलकर एक डाटाबेस फ़ाइल् कहलाती है
Data Model – विभिन्न तत्वों का संकलन जो एक डाटाबेस की बनावट को वर्णित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, डाटा मॉडल कहलाता है, डाटाबेस की बनावट के अन्तर्गत डाटा टाईप, एंट्रीब्युट उनका आपसी सबंध और उनकी कन्सट्रेन्ट आते है, इस प्रकार डाटा मॉडल तीन प्रकार के होते है –
(i) Relational Data Model – IBM research के Ted Codd नामक व्यक्ति ने सर्वप्रथम RDM बनाया था, ये मॉडल को डेटाबेस के संकलन के रूप में दर्शाता है, इस मॉडल में डाटा को साधारण पंक्ति व कॉलम के रूप में विकसित किया जाता है जिसमे प्रत्येक डाटा फील्ड को कॉलम की तरह व प्रत्येक रिकॉर्ड को सारणी की एक पंक्ति की तरह देखा जाता है, जिसमे प्रत्येक रो सम्बंधित डाटा मानो के समूह प्रदर्शित करती है रिलेशनल मॉडल में पंक्ति को टपल, कॉलम हैडर को एट्रीब्युट और सारणी को रिलेशन कहते है, डाटा टाईप जो मानो का प्रकार बताते है डोमेन कहलाते है
(ii) Network Data Model – इस मॉडल के अन्दर रिलेशनशिप- मैनी-टू-मैनी का होता है तथा विभिन्न डाटा आइटमो के मध्य सबंध को सेट कहते है, रिकार्ड्स के मध्य समंधो को प्रदर्शित करने के लिए यह मॉडल कन्सट्रक्ट प्रदान करता है जिसे सेट टाईप कहते है, एक सेट टाईप दो रिकॉर्ड टाईप के बिच 1 : N का सबंध प्रकट करता है
(iii) Hierarchical Data Model – यह मॉडल मुख्यतः डाटा की बनावट के दो एलिमेंट को वर्णित करता है-
(i) Record – फील्ड मानो का समूह जो किसी एन्टिटी या रिलेशनशिप इन्सटेंस की सुचना प्रदान करता है
(ii) Parent – Child Relationship – यह दो रिकार्डो टाइप के मध्य 1 : N का सबंध है, 1- side का रिकॉर्ड टाईप पैरेंट रिकॉर्ड टाईप कहलाता है तथा N- side का रिकॉर्ड टाईप, चाइल्ड रिकॉर्ड टाईप कहलाता है
Instance – एक विशेष समय पर डाटाबेस में निहित डाटा को instance कहते है
Schema – किसी डाटाबेस का वर्णन डाटाबेस स्कीमा कहलाता है तथा यह डेटाबेस को डिजाईन करते समय निर्धारित किया जाता है और इसे तेजी से नही बदला जाता
EMPLOYEE
ENO
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ENAME
|
DESIGNATION
|
DOJ
|
ADDRESS
|
DEPARTMENT
|
DEPARTMENT
DNO
|
DNAME
|
DMANAGER
|
DLOCATION
|
PROJECT
PNO
|
PNAME
|
PLOCATION
|
PMANAGER
|
PLEADER
|
(स्कीमा डायग्राम )
Data Dictionary – डाटा डिक्शनरी वह तालिका है जहाँ डाटा से सम्बंधित सारी जानकारी मिलती है, डाटा डिक्शनरी में metadata बनाया जाता है, यह स्कीमा व कंस्ट्रेंट्स के बारे में कैटलोग सुचना स्टोर करती है इसके साथ डिज़ाइन डिसिजन्स, यूसेज स्टेंडर्ड, एप्लीकेशन प्रोग्राम डिस्क्रिप्शन और यूजर इनफार्मेशन जैसे अन्य सुचनाए भी संग्रहित करती है, इस प्रकार के सिस्टम को सुचना रिपोजरी भी कहते है
Data Language – डाटा लेंग्वेज Conceptual and internal स्तर के स्कीमा को निर्धारित करती है, यह चार प्रकार की होती है जो निम्न्न प्रकार है-
1. Data Definition language (DDL) – इस लैंग्वेज का प्रयोग डाटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर तथा डिजाईनर द्वारा किया जाता है, इसमें निम्न्न कमांड यूज़ आती है – Create, Truncate, Alter – modify
2. Data Manipulation language (DML) – इस लैंग्वेज का प्रयोग डाटाबेस को retrieval करने, कुछ नया जोड़ने, कुछ हटाने तथा पुराने डाटा में बदलाव करने के लिए किया जाता है यह दो प्रकार की होती है –
(i) High level (Non procedural - DML) – इस लैंग्वेज को Structured Query language (SQL) भी कहते है , इस में निम्न्न कमांड आती है - Insert, Delete, Drop, Update, Select
(ii) Low level (Procedural – DML) – इसको PL/ SQL भी कहते है, यह लैंग्वेज हाई लेवल के कमांडो का प्रयोग कर के लिखी जाती है यह General purpose programming language है, जब डी एम एल कमांड को programming लैंग्वेज में प्रयोग किया जाता है तब DML को डाटा सबलैंग्वेज कहते है
3. Storage Definition language (SDL) – इंटरनल स्कीमा को निर्धरित करने के लिए इस लैंग्वेज का प्रयोग किया जाता है
4. View Definition language (VDL) – Three level schema Architecture को निर्धरित करने के लिए इस लैंग्वेज का प्रयोग किया जाता है इस लैंग्वेज का प्रयोग यूजर के व्यू को कांसेप्टुअल स्कीमा की मेपिंग को निर्धारित करने के लिए किया जाता है.
STRUCTURE OF DBMS
Database Management System Structure
निम्न्न प्रकार से हम डाटाबेस की संरचना को दर्शा सकते है -
Employee
|
ENO
|
ENA.
|
DESIGN.
|
DOJ
|
DEPT.
|
SAL.
|
ADD.
|
PH. NO.
|
E1
E2
|
Amit
Komal
|
Clerk
Operator
|
12.6 .04
20.5.04
|
Account
MIS
|
5000
6000
|
delhi
gujrat
|
562345
124545
|
Department
|
D. No.
|
D. name
|
D. Location
|
D. Manager
|
D1
D2
|
Account
MIS
|
F 1
F 2
|
rocky
john
|
work_on
|
P. No.
|
hours
|
Plocation
|
Team Leader
|
P1
P2
|
12
10
|
smith
mark
|
jakab
flip
|
उपरोक्त डाटाबेस एक कंपनी का डाटाबेस है जो तीन फ़ाइलो में संगठित है, जिसमे प्रत्येक फ़ाइल् एक ही प्रकार के डाटा टाईप के रिकार्डो को संगृहीत करती है
Emoloyee फ़ाइल् प्रत्येक एम्प्लोयी का डाटा संगृहीत करती है, Department फाइल प्रत्येक Department का डाटा संगृहीत करती है और work_on फाइल प्रत्येक प्रोडक्ट का डाटा संग्रहित करती है, इस डाटाबेस को वर्णित करने के लिए सर्वप्रथम हमें प्रत्येक फ़ाइल् के रिकार्डो की बनावट निर्धारित करनी चाहिए, इसके लिए उस डाटाबेस एट्रीब्यूट के डाटा टाईप की निर्धारित करना चाहिए जिसमे विभिन्न प्रकार के डाटा संगृहीत होते है-
INTERNAL STRUCTURE OF DBMS
DBMS ARCHITECTURE
Database Management System Architecture
DBMS की संरचना का प्रतिपादन ANSI/SPARC कमेटी द्वारा डाटाबेस को एक निश्चित स्टेंडर्ड देने के लिए किया, इसका नाम Three-Schema या Level Architecture है, इस संरचना का उद्देश्य application programme के यूजरकर्ता तथा फिजिकल डाटाबेस को अलग करना है, यह एक three level स्कीमा पर वर्णित है
(i) Internal level Schema – इंटरनल स्कीमा डाटाबेस के फिजिकल स्टोरेज संरचना को निर्धारित करता है, इंटरनल स्कीमा डाटा मॉडल को यूज़ करता है, data storage का सम्पूर्ण विवरण है तथा डाटाबेस के लिए एक्सेस पाथ का वर्णन करता है
(ii) Conceptual Schema – यह स्कीमा प्रयोगकर्ताओं के समूह के लिए पुरे डाटाबेस की बनावट को निर्धारित करता है, यह फिजिकल स्टोरेज संरचना के विवरण को छुपाता है तथा कन्सट्रेन, रिलेशनशिप, डाटा टाईप और प्रविष्टियो पर ध्यान केन्द्रित करता है
(iii) External level Schema – इस स्कीमा को व्यू लेवल भी कहते है, प्रत्येक एक्सटर्नल स्कीमा एक विशेष प्रयोगकर्ता के समूह के लिए डाटाबेस का भाग वर्णित करता है, इस स्तर पर उच्च स्तरीय डाटा मॉडल का प्रयोग किया जाता है
Advantages of Database Management System
Data Sharing – एक समय में एक ही डाटा का एक या एक से अधिक यूजर उपयोग कर सकते है, इस लिए इस प्रक्रिया को data sharing कहा जाता है
Reduction and Inconsistency Redundancy – DBA के नियंत्रण की वजह से बेकार का डाटा सिस्टम में स्टोर नही हो पाता, इस प्रक्रिया में वह ये देखता है की जो बेकार का डाटा सिस्टम में डाला जा रहा है उसका आगे कही उपयोग है या नही, इस प्रकार के डाटा के संग्रहण को ये रोकता है , कई बार ऐसे डाटा को भी सिस्टम में स्टोर करवाया जाता है जो पहले से मोजूद होता है, यह ऐसे डाटा को दुबारा प्रविष्ट होने से रोकता है इसे ही Redundan डाटा कहा जाता है
Data integrity – डाटा इंटीग्रिटी का मतलब डाटा का सही होना है, DBA द्वारा नियंत्रित होने की वजह से डाटाबेस सिस्टम की समय पर जाँच होती रहती है की जी डाटा संग्रहण के लिए भेजा जा रहा है vo सही है या नही, संग्रहण सही स्थान पर हुआ है या नही डाटा इंटीग्रिटी कहलाती है
Data Privacy - किसी भी संस्था /ऑर्गनाइजेशन के लिए डाटा बहुत ही आवश्यक तथा गोपनीय रहता है इस लिए डाटा की सुरक्षा बहुत आवशयक है इस लिए DBA को ये देखना होता है की कोई अवांछित व्यक्ति संस्था के डाटा के नजदीक तो नही आरहा है या दुरूपयोग कर रहा है साथ ही ये इस बात का भी ध्यान रखता है की संगठन के व्यक्ति को कितने डाटा की आवश्यकता है तथा कितना डाटा देना उचित होगा DBA ये भी नजर रखता है की कोई यूजर संगठन के डाटा को मिटा न दे इसलिए वह हर व्यक्ति को अलग अलग एक्सेस की अनुमति देता है जिससे की कोई भी व्यक्ति डाटा को नुकसान न पहुचा सके
Data Independence – DBMS में दो तरह की डाटा इंडिपेंडेन्स होती है जो निम्न्न प्रकार है –
Physical Data Independence – इस प्रकार की डाटा इंडिपेंडेंन्स में यदि हम अपने डाटाबेस एक स्टोरेज स्त्रोत से दुसरे स्टोरेज में परिवर्तन करना चाहेगे तो एप्लीकेशन प्रोग्राम में बिना किसी चेंज के हम डाटा को परिवर्तित कर सकते है
Logical data Independence – लॉजिकल डाटा इन्देपेंडेन्स उस योग्यता को कहते है जिसमे एक्सटर्नल स्कीमा में परिवर्तन किये बिना कांसेप्टूअल स्कीमा में परिवर्तन किया जा सकता है, कांसेप्टूअल स्कीमा में परिवर्तन किसी रिकॉर्ड को हटाकर या जोड़ कर किया जा सकता है.
Application time – DBMS वेसे तो कई जटिल कार्य पूर्ण करता है लेकिन इनमे से बहुत बड़ी क्रिया है जल्दी रिपोर्ट बनाकर प्रस्तुत करना, जिससे एप्लीकेशन टाइम कम होता है
Disadvantages of Database Management System
DBMS के कई लाभ होने के साथ कई स्थितियां एसी भी आती है जहाँ डाटाबेस का प्रयोग करने पर अनावश्यक खर्च आता है जैसे- हार्डवेर, सोफ्टवेर व ट्रेनिग में, डाटा को प्रोसेस करने में, डाटा सुरक्षा, डाटा कन्ट्रोल आदि
इसके अतिरिक्त यदि डाटाबेस डिजायनर व DBA डाटाबेस को ठीक प्रकार डिजाईन नही करते है तो कई समस्याएं उत्त्पन्न हो सकती है अत: इन परिस्थितियों में DBMS का प्रयोग न करके पारम्परिक फाइल मैनेजमेंट का प्रयोग करना चाहिए-
DBMS की निम्न्न हानिया है –
DBMS की कार्यप्रणाली अत्यधिक जटिल है
इसका प्रबंधन व रख रखाव कठिन व कीमती है
इसमें कार्यन्वयन के लिए एक्सपर्ट लोगो की जरुरत होती है
इसमें डाटाबेस को विकसित करने में काफी समय लगता है
Entity Relationship Diagram (ER Diagram)
ER मॉडल उन सिस्टम का आसान रूप है जो पहले उपयोग में लाये जाते थे जो की Hierarchical and natwork model पर आधारित थे इस मॉडल की मदद से constraint के साथ साथ रिलेशनशिप को भी दर्शाया जा सकता है वेसे तो ये मॉडल फिजिकल डाटाबेस मॉडल को दर्शाता है लेकिन यह लॉजिकल डेटाबेस मॉडल के डिजाईन अथवा संचार हेतु प्रयोग मर लाया जाता है
इस मॉडल में एक समान ढांचे के ऑब्जेक्ट्स को एन्टिटी सेट में इकठ्ठा कर लिया जाता है इस मॉडल में एक जैसे ढांचे के ऑब्जेक्ट को एन्टिटी सेट की रिलेशनशिप को ER रिलेशनशिप कहा जाता है और इसे 1 : 1, 1 : M, या M : N से दर्शाया जाता है, ER मॉडल तीन तरीके से डाटा को दर्शाता है-
1. Entity – एन्टिटी वास्तविक दुनिया की चीजो को एप्लीकेशन में दर्शाता है, एन्टिटी एक प्रकार का ऑब्जेक्ट है, इस प्रकार के ऑब्जेक्ट को एक ही प्रकार के एंट्रिबुट से दर्शाया जा सकता है, दो अलग अलग ऑब्जेक्ट्स को अलग अलग एन्टिटी सेट में डाल कर अलग पहचान उपलब्ध कराई जाती है
2. Relationship – एन्टिटीज के समागम को रिलेशनशिप कहते है एक प्रकार की रिलेशनशिप को इकठ्ठा करके उसे रिलेशनशिप सेट कहते है अगर किसी रिलेशनशिप में दो एन्टिटी सेट हो तो उसे बाइनरी रिलेशनशिप सेट कहते है
3. Attribute – एट्रिब्यूट, एन्टिटी एवं रिलेशनशिप को दर्शाता है
Key (कीज) – key एक और एक से अधिक एट्रीब्यूट का combination है जो की सेट के एक से अधिक इन्सटेंसस को पहचान देने के प्रयोग में लाई जाती है, key हमें मदद करती है एट्रीब्यूट के सेट को पहचानने में जो एन्टिटीस को एक दुसरे से अलग करते है, key रिलेशनशिप को अलग पहचान उपलब्ध कराती है जिसकी मदद से रिलेशनशिप को एक दुसरे से अलग पहचाना जा सके. key निम्न्न प्रकार की होती है –
1. Super key – सुपर-की एक और एक से अधिक एट्रीब्यूट का सैट होती है जिसको इकठ्ठा लिया जा सकता है ताकि एन्टिटी सैट की एन्टिटीज को अलग पहचान दी जा सके
2. Candidate key – छोटी से छोटी सुपर-की को कैंडिडेट की कहा जाता है और उन्हें एन्टिटी सैट में एन्टिटी को अलग पहचान देने के लिए उपयोग भी किया जा सकता है
3. Primary key – प्रोइमारी की कैंडिडेट की को दर्शाती है जिसे की डाटाबेस डिजाइनर मुख्य रूप से एन्टिटी को अलग पहचान देने के लिए करता है
4. Alternate key – अगर किसी सारणी में एक से अधिक कैंडिडेट्स-की है तो उन कीज में से एक प्राइमरी-की होगी और बाकि सारी की को अल्टरनेट –की कहेगे
5. Secondary key – सेकेंडरी की एक और एक से अधिक एट्रीब्यूटस का कॉम्बिनेशन है जो कैंडिडेट-की तो नही होती लेकिन फिर भी किसी विशेष खूबी के कारण एन्टिटी सेट को अलग करती है
Generalization and Specialization - Abstraction सबसे आसान तरीका है ओब्जेक्टेस के सैट से सम्बंधित सूचनाओ को छुपा कर रखने का यह यूजर को मदद करता है की वह एप्लीकेशन की खूबियों पर ध्यान लगा सके और उन्हें समझ सके.
जनरलाइजेशन एक अब्स्त्रक्टिंग प्रोसेस है ऑब्जेक्ट सेट को एक साधारण क्लास के रूप में देखने की जिसमे की ऑब्जेक्ट की साधारण खूबियों पर ध्यान दिया जाता है तथा उनके अन्तरो को छोड़ दिया जाता है उदहारण के तोर पर – विद्यार्थी जनरलाइजेशन है, की वह स्नातक है या नही
स्पेशियलाइजेशन भी एक अब्स्त्रक्टिंग प्रोसेस है जिसमे नै खूबियों को ऑब्जेक्ट्स की पुरानी क्लासेज में जोड़ दिया जाता है ताकि ऑब्जेक्ट्स की और एक से अधिक नई क्लासेज बन सके इसके लिए Higher level Entities को लिया जाता है फिर उनमे नई खूबियों को जोड़ा जाता है जिससे वो lower level entities बन जाती है
lower level entities में हायर लेवल एन्टिटीस की खुबिया भी होती है इसके पता चलता है specialization, generalization की ठीक विपरीत प्रक्रिया है जिसे हम निम्न्न चित्र द्वारा आसानी से समझ सकते है –
Sophisticated User - सोफिसटीकेटीड़ यूजर वो लोग होते है जो की डाटाबेस से डाटा तो लेते है मगर बिना किसी प्रोग्राम के, वह लोग database query language में अपने प्रशन query के रूप में लिख देते है और फिर उस query को query processor में डाल देते है, जिसका काम डी एम एल स्टेटमेंट को उन शब्दों में बदल देना है जो की मैनेजर समझ सके
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